मंगलवार, 1 अप्रैल 2008

मुर्ख-दिवस का सच

क्या आप जानते हैं कि "मुर्ख-दिवस" क्यों , और कब से मनाया जाता है ? शायद आप जानते हो , या हो सकता है कि आपको सच्चाई पता ना हो । अगर आपका दिल भारी हो तो कृप्या कर आगे पढें ---
"मुर्ख-दिवस" को मनाने कि बात सदीयों पुरानी हैं , इस का विवरण महामुनी गंधर्व व्यास लिखित दुर्लभ ग्रंथ में भी मिलता है । (नाम लिखने के लिये जगह नहीं है )। तब इस दुनिया मे दो राज्य हीं थे । एक राज्य का नाम "इंद्रप्रस्थ" और दुसरे का "हस्तिनापुर" । इंद्रप्रस्थ के चक्रवर्ती राजा "दू-योजन" और "हस्तिनापुर" के निकटवर्ती राजा "सु-योजन" । वास्तव में दोनो के बीच एक गहरा और चौङा रीसता था , जो दोनो को एक दुसरे से अटूट बंधन में जोङ कर शदीयों से रखे था । "सू" का नाम "दू" के राज्य में लेने पर फाँसी और और "दू" के राज्य मे "सू" का नाम लेने वाले को आजीवन कारवास । झगङे कि जङ हमेशा कि तरह एक नारी "परी-योजना" । दू और सू के झगङे मे दोनों राज्य के लोग परेशान । आये दिन दोनों राज्यों के बीच महा-संग्राम हुआ करते थे । कभी "सू" कि सेना "दू" के राज्य पे सरे आलु की बरसात करवाती तो कभी "दू" की सेना "सू" के राज्य पे सरे टमाटर की । दोनों राज्य की जनता परेशान रहते । खाने को अनाज और सब्जीयाँ नहीं बचती और उपर से महा-संग्राम के बाद की बदबू, जिसको साफ करते करते छः महीने गुजर जाते और फिर अगला महा-संग्राम । इस सङे हुए संग्राम से खींझ कर "परी-योजना" ने एक बुढे बैल से शादी कर ली और सू ओर दू के दिल पर पहाङ टुट पङा । सू और दु के टुटे हुए दिल, साँसों का बोझ नहीं उठा पाए और लुठक कर दोनो राज्यो के बीच के रीसते को भर गये ।
रीसते भरते ही दोनों राज्य कि जनता आपस मे मिल कर रहने लगे , आखिर अकेले आलु और टमाटर की भी कोई सब्जी कब तक खाता । तब से ये दिन "सूदू-रयोजना" दिवस के रुप मे लोग मनाते हैं । जिसे अंग्रेजो ने नाम बदल कर "मुर्ख-दिवस" बना दिया जिसे लोग "अप्रैल-फूल" भी कहते है ।

2 comments:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut badhiyaa.......murkh-diwas ki jaankaari di aapne.

deepak ने कहा…

dhanyabad chtkara k sath likhte rahe
Deepak Dainik jagran sitamarhi bihar