सोमवार, 11 सितंबर 2017

ढोकलाम विवाद - आखिर जीत किसकी

 
तीन महीनों के बाद आई शांति क्या इतनी आसान रही होगी, शायद नहीं । और क्या यह विवाद एक साधारण घटनाओं जैसा कुछ चर्चाओं में सिमट हो जाएगी, मेरी समझ में तो नहीं । य़ह विवाद अब इतिहास के पन्नों में एक पङाव बन गई है । इसका केवल भारत से संबंधित ही नहीं बल्कि चीन से संबंधित हर अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझानें में एक महत्वपुर्ण स्थान मिलेगा ।
           कुछ दसकों से चीन विकास के पङाव की छलाँगे तो लगा रहा है , लेकीन साथ में अपने दंभपूर्ण व्यवहार के कारण अपनें अंतरराष्ट्रीय संबंधों को असहज भी बना रहा है । बीते तीन महीने में चीन ने क्या खोया है, इसे समझना बहुत जरुरी है । भारत और भारतीय राजनयीकों के उपर अवांछीत आरोपों का प्रहार , भारतीय इतिहास को खंघालने की  असफल कोशिश , ओछी करतूतों का प्रयोग जैसे : राहुल गाँधी जैसे अनभिज्ञ राजनैतिक से रात के अंधेरे में मुलाकात (मानों देश में इस विषय में एकजुटता नहीं ) , विदेश मंत्री को झुठा कहना, अपने नागरीकों को भारत ना जाने की सलाह देना , अभद्र और रंगभेद पूर्ण विडीयो को जारी करना , सीमा पर अपने सामरीक दंभ का प्रदर्शन, बस यह ही दर्शाता है कि तीन आयामी चीनी नीति विफल रही है । जिन देशो को अपने आर्थिक और सामरीक बल से चीन चुप कराने में अब तक कामयाब रहा था, उनके सामने एक विकल्प है । कुछ वर्षों में जो भारतीय संबंधो में सुधार आ रहा था उसकी गति अब धीमी पङेगी , और  शायद जनमानस में १९६२ की यादें उभर जाए और राष्ट्रिय सोच को बल मिले । 
                  भारत के लिए एक बङी सबक यह होगी कि चीन से संबंध कितने भी सुधर जाए, भारत अपनी सामरीक  तैयारी को ढीला नहीं कर सकता । आर्थिक विकास के साथ सामरीक स्वावलंबन भी उतना ही जरुरी है । सरकार को इस दिशा में और ज्यादा सुद्रीढ और दूरदर्शी नीति बनाने की जरुरत है । इस विवाद के दौरान सेना की तैयारी और संयम  इस बात को परिचय देती है कि हमारी सेना को दम खम किसी भी देश से कम नहीं , और वे देश की रक्षा में हर समय तत्पर रहतें हैं । रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री का संतुलीत व्यवहार भी भारत को एक संयमीत राष्ट्र की पहचान देता है।
                   शायद बहुत दिनों के बाद ही सच्चाई सामने आए कि कुटनैतीक तौर पर किन किन बातों पर सहमती बनी है और ब्रिक्स सम्मेलन में जो सहमती बनी है वह कब तक कायम रहती है । लेकिन भारतीय संबंधों को अब चीन हल्के से तो नहीं ले सकता   भारतीय शासकों को एक बङी सबक मिली है और वैश्विक परीदृश्य मे एक नई पहचान ।
         इस बात से कोई फर्क नहीं पङता कि पहले कौन हटा सीमा से जीत तो भारतीय कूटनीति की ही हुई है ।
 

बुधवार, 6 अगस्त 2008

आखिर जमीन किसकी है ?

पिछले एक महीने से जो कुछ जम्मू-कश्मीर में हो रहा है , वह एक ही बात बताती है कि कुछ भी हो जाए ये काँग्रेस की सरकार जब तक रहेगी कोई चैन से नहीं रह सकता है । अमन-चैन से ना रहने देने का तो मानों काँग्रेस की सरकार ने ठेका ले रखा है । महंगाई को तो संभाल नहीं पा रही है ये सरकार और आये दिन नई समस्याएँ खङी करती रहती है ।
जम्मू का नाम आते ही बस एक बात ही याद आती है, निर्वासीत और उत्पीङित कश्मीरी पंडित। मझे तो याद भी नहीं कि कभी, जम्मू का नाम पाकिस्तानी आतंकवादीयों के हमले के अलावा समाचारों मे आया भी है । फिर अचानक से अमरनाथ यात्रा के जमीन का विवाद इतना कैसे बढ गया । क्या ये सिर्फ भाजपाइयों या शिव-सैनिको की करतूत है ? ऐसा तो लगता नही क्योकि हर बंद या प्रदर्शन का इतना बङा होना बिना स्थानीय जनता के समर्थन के संभव नहीं है । इसे कहते है अच्छे को उकसा कर बुरा बनाना । क्या जब पाकिस्तानी आतंकवादीयों के दबाव मे आकर काँग्रेसी सरकार ने जमीन को वापस लिया था, तो क्या सोचा था कि इसका कोई असर नहीं होगा ? काँग्रेसी तुष्टिकारी नीतियों का फल क्या पुरा देश आतंकवाद के रुप मे भुगत नहीं रहा है ? जो आये दिन सरकार अपनी लचरता की उद्घोषणा करती रहती है । सरकार अपने फैसले लेने से पहले तो कोइ सर्वदलीय बैठक नहीं की थी, तो अब भाजपाईयो पर दोषारोपन क्यों ? क्या सरकार इतनी कमजोर है कि कुछ भाजपाइयों या शिव-सैनिकों को संभाल नहीं सकती ? या फिर महंगाई और घुसखोरी से ध्यान हटाने की ये एक सोची समझी चाल है ।

बुधवार, 21 मई 2008

तुम बिन

पतझङ के दिन कैसे बिते, मत पुछो।
तुम बिन दिन कैसे बिते, मत पुछो ।

जब आते वो पल यादों मे,
हर पल जब कटते थे सालों में ।

दिन रात एक सा लगता था,
दुःख-सुख एक सा लगता था ।

पतझङ के दिन कैसे बिते, मत पुछो।
तुम बिन दिन कैसे बिते, मत पुछो ।

पल पल का कटना दुश्कर होता था,
हर पल मे जीना कष्टकर होता था ।

लेकिन जीते थे बस एक आश में,
आयेगी फिर से बसंत जीवन में।

होंगी जब फिर, तुम मेरे बाहों में,
जीने का बोझ फिर हल्का होगा,
तेरे प्यार में दिल उमङा होगा ।

बसंत लौट फिर से आयेगी,
प्यासे मन को तृप्त कर जायेगी ।

पतझङ के दिन कैसे बिते, मत पुछो।
तुम बिन दिन कैसे बिते, मत पुछो ।