२००८ के केंन्द्रीय बजट मे भारत सरकार के ६०,००० हजार करोङ के ऋण माफी की घोषणा के बाद, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक पटल पर एक द्वन्द सा प्रारंभ हो गया है । लोगो के बीच इस बजट कि आलोचना और प्रसंशा कि होङ सी मच गई है । एक तरफ यह बजट कुछ लोगों के लिए खुशीयाँ ले कर आया है तो दुसरी तरफ, उदास और मायुस किसान जिनको सरकारी बैंको से लोन नही मिला और आखिर में साहुकारों के चंगुल में फसें । ऐसे किसानो की संख्या दो तीहाई से भी ज्यादा है । और साथ मे वो किसान , जो पाई-पाई जमा कर के बैंको का ऋण चुकाए, और अब पछता रहे हैं ।
सरकार ने ऋण माफी का एलान सिर्फ २ हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानो के लिए की है, जिनके लिए ऋण मिलना ही बङी बात होती है । दलालों और बैंक के बाबुओं को चढावा के बिना एक रुपया का ऋण भी नहीं मिलता । बीजेपी की दलील माने तो ऐसे ऋण २३,००० करोङ से ज्यादा नही है, तो फिर इतना ढिंढोरा क्यों ? इसके साथ-साथ ये ऋण माफी किसानों तक कब पहुँचेगी इसका जिक्र वित्त-मंत्रीजी ने नहीं किया है, और ना ही ये बता रहे हैं कि बैंको को हो रहे घाटो से कैसे उबारेंगे । लगता है कि वी.पी.सिंह की सरकार से कोई सबक लेने को काँग्रेस की सरकार तैयार नहीं है, जब १०,००० करोङ के ऋण माफी के बाद कई सहकारी बैको का दिवालीया निकल गया था ।
अगर काँग्रेस की सरकार सही में किसानो का भला चाहती है तो, किसानो को उचित मुल्य पर खाद और बीज के प्रबंध , आनाज के समर्थन मुल्य, उन्नत खेती के तरीकों को किसान तक पहुचाने पर विचार करना चाहिए, ना की ऐसे चुनावी ढकोसलों पर ध्यान देना चाहिए ।
बुधवार, 12 मार्च 2008
कृषि ऋण माफी : एक मृग तृष्णा ?
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3 comments:
नलिन विलोचन जी, आपने हिंदी में लिखने की इच्छा पूरी कर ली, इसके लिए बधाई। आपने एकदम सही बात उठाई है। किसानों को सब्जबाग दिखाकर वोट की फसल काटने की तैयारी है। बस एक छोटा-सा भूल-सुधार। सरकार ने दो एकड़ नहीं, बल्कि दो हेक्टेयर (5 एकड़) से कम के किसानों की कर्जमाफी का ऐलान किया है। इस hj मैंने भी ठीक बजट के दिन लिखा था।
अनिलजी आपका धन्यवाद, मेरे ब्याग पर आकर सुझाव देने के लिए । मैंने गलती सुधार दी है ।
ब्लाग की दुनिया में आपका स्वागत है.
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