आजकल काँग्रेसी नेताओं में सरगर्मी आ गयी है ? इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं । चुनाव की बू सबसे पहले काँग्रेसी नेताओं से ही फैलती है , कम-से-कम ६० सालों तक देश पर राज कर इनता तो सीख ही गए हैं । और अब इस पाठशाला मे एक और कथीत युवा नेता ने नाम लिखाया है, " राहुल गाँधी " । इसी पाठशाला से राहुलजी सीखें हैं कि चार साल तक चाहे लाखों किसान आत्महत्या कर ले, कोई भारत भ्रमण कि जरुरत नहीं, बस जैसे ही चुनावी बिगुल बजे निकल पङो पद-यात्रा के बहाने राजनैतिक रोटी सेकने।
राहुलजी पिछले कुछ हफ्तों से भारत खोज पर निकलें हैं । शायद पिछले चार सालों में भारत किताबों में खोज रहे थे , और जब कुछ हाथ नही लगा तो निकल पङे , जंगल-झाङ में भारत खोजने । अगर दो-तीन साल पहले शुरु करते तो कुछ खोज पाते, मगर अब तो समय कम हैं और भोली-भाली जनता को अपना मुखङा दिखाने का इससे अच्छा समय नहीं । चुनाव में कम समय हैं और इतनी जल्दी लोग भुलेंगे भी नहीं , कम से कम उङीसा पुलिस तो नहीं भुलेगी जो पहले से नक्सलीयों से भीङी हुई है, और झेल रहे हैं बिन-बुलाये मेहमान को। अभी उङीसा की सरकार के नाक में दम कर रखा है , अगला शिकार मध्य-प्रदेश और फिर जाने कौन-कौन । रात की चुपचाप मुलाकात का तो सिर्फ एक ही मकसद हो सकता है मीडीया कवरेज । राहुलजी सोच रहे होंगे काश नकस्लीयों के हाथ लग जाता तो और अच्छा मीडीया कवरेज मिलता , दो तीन हफ्तों तक तो सुर्खीयों में रहता हीं ।
कभी अपनी पार्टी को बदले की माँग , तो कभी कोयला कंपनी का विरोध और अब एक नया सगुफा किसानों की ऋण माफी उत्पादकता पर हो। लगता है कोई ढोस मुद्दा हाथ नहीं लगा है । राहुलजी ६०,००० करोङ का दिखावा कम पङ गया था क्या ? जो अब नया राग अलाप रहे हैं , या फिर पता चल गया की लोग ६०,००० करोङ के झाँसे में नहीं आ रहे है । भगवान बचाये इन राजनीति के नौसिखियों से।
गुरुवार, 13 मार्च 2008
राहुल गाँधी और भारत की खोज - राजनैतिक जरुरत या देश प्रेम
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1 comments:
यह साले सब मरासी हे,नोटंकी बाज ( मरासी एक जात हे जो शादी विवाहो पर आते हे ओर मजाक करते हे यह पंजाब ओर पकिस्तान मे मिलते हे) अब हमारी ससंअद मे भी हे.
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