जम्मू का नाम आते ही बस एक बात ही याद आती है, निर्वासीत और उत्पीङित कश्मीरी पंडित। मझे तो याद भी नहीं कि कभी, जम्मू का नाम पाकिस्तानी आतंकवादीयों के हमले के अलावा समाचारों मे आया भी है । फिर अचानक से अमरनाथ यात्रा के जमीन का विवाद इतना कैसे बढ गया । क्या ये सिर्फ भाजपाइयों या शिव-सैनिको की करतूत है ? ऐसा तो लगता नही क्योकि हर बंद या प्रदर्शन का इतना बङा होना बिना स्थानीय जनता के समर्थन के संभव नहीं है । इसे कहते है अच्छे को उकसा कर बुरा बनाना । क्या जब पाकिस्तानी आतंकवादीयों के दबाव मे आकर काँग्रेसी सरकार ने जमीन को वापस लिया था, तो क्या सोचा था कि इसका कोई असर नहीं होगा ? काँग्रेसी तुष्टिकारी नीतियों का फल क्या पुरा देश आतंकवाद के रुप मे भुगत नहीं रहा है ? जो आये दिन सरकार अपनी लचरता की उद्घोषणा करती रहती है । सरकार अपने फैसले लेने से पहले तो कोइ सर्वदलीय बैठक नहीं की थी, तो अब भाजपाईयो पर दोषारोपन क्यों ? क्या सरकार इतनी कमजोर है कि कुछ भाजपाइयों या शिव-सैनिकों को संभाल नहीं सकती ? या फिर महंगाई और घुसखोरी से ध्यान हटाने की ये एक सोची समझी चाल है ।
बुधवार, 6 अगस्त 2008
आखिर जमीन किसकी है ?
जम्मू का नाम आते ही बस एक बात ही याद आती है, निर्वासीत और उत्पीङित कश्मीरी पंडित। मझे तो याद भी नहीं कि कभी, जम्मू का नाम पाकिस्तानी आतंकवादीयों के हमले के अलावा समाचारों मे आया भी है । फिर अचानक से अमरनाथ यात्रा के जमीन का विवाद इतना कैसे बढ गया । क्या ये सिर्फ भाजपाइयों या शिव-सैनिको की करतूत है ? ऐसा तो लगता नही क्योकि हर बंद या प्रदर्शन का इतना बङा होना बिना स्थानीय जनता के समर्थन के संभव नहीं है । इसे कहते है अच्छे को उकसा कर बुरा बनाना । क्या जब पाकिस्तानी आतंकवादीयों के दबाव मे आकर काँग्रेसी सरकार ने जमीन को वापस लिया था, तो क्या सोचा था कि इसका कोई असर नहीं होगा ? काँग्रेसी तुष्टिकारी नीतियों का फल क्या पुरा देश आतंकवाद के रुप मे भुगत नहीं रहा है ? जो आये दिन सरकार अपनी लचरता की उद्घोषणा करती रहती है । सरकार अपने फैसले लेने से पहले तो कोइ सर्वदलीय बैठक नहीं की थी, तो अब भाजपाईयो पर दोषारोपन क्यों ? क्या सरकार इतनी कमजोर है कि कुछ भाजपाइयों या शिव-सैनिकों को संभाल नहीं सकती ? या फिर महंगाई और घुसखोरी से ध्यान हटाने की ये एक सोची समझी चाल है ।
बुधवार, 21 मई 2008
तुम बिन
पतझङ के दिन कैसे बिते, मत पुछो।
तुम बिन दिन कैसे बिते, मत पुछो ।
जब आते वो पल यादों मे,
हर पल जब कटते थे सालों में ।
दिन रात एक सा लगता था,
दुःख-सुख एक सा लगता था ।
पतझङ के दिन कैसे बिते, मत पुछो।
तुम बिन दिन कैसे बिते, मत पुछो ।
पल पल का कटना दुश्कर होता था,
हर पल मे जीना कष्टकर होता था ।
लेकिन जीते थे बस एक आश में,
आयेगी फिर से बसंत जीवन में।
होंगी जब फिर, तुम मेरे बाहों में,
जीने का बोझ फिर हल्का होगा,
तेरे प्यार में दिल उमङा होगा ।
बसंत लौट फिर से आयेगी,
प्यासे मन को तृप्त कर जायेगी ।
पतझङ के दिन कैसे बिते, मत पुछो।
तुम बिन दिन कैसे बिते, मत पुछो ।
शुक्रवार, 18 अप्रैल 2008
आईपीएल का वेब-साईट
आईपीएल के तरकश का एक और तीर, बीसीसीआई ने लाईव-मीडीया (कनाडा) को आईपीएल के वेब-साइट के अधीकार २०० कङोङ रुपये मे बेचा है । लाईव-मीडीया को १० साल का अनुबंध मिला है । लगता है कि बीसीसीआई के पैसा कमाने के अनेक तरीको में से यह एक है । काश आईपीएल से कमाये पैसों का उपयोग बीसीसीआई क्रिकेट को आगे बढाने में भी करेगी ।
आईपीएल : क्या क्रिकेट की परिभाषा बदल पायेगी ?
आईपीएल अपने साथ बङे-बङे नाम को जोङने में कामयाब रही हैं इससे क्रिकेट प्रेमीयों की आशाएँ बढ गई है । अब जब आज आईपीएल की शुरुआत हो रही है , लोगों की निगाहें इस पर टीकी है । पैसों के मामले मे आईपीएल आगे जरुर है , पर क्या आईपीएल क्रिकेट २०-२० के स्तर को उठा पायेगा । क्या ये क्रिकेट मे कुछ नये सितारें उभार पायेंगे ? खिलाङी खेल के स्तर को अंतरराष्ट्रीय दर्जे का बना पायेंगे ? क्या खिलाङी जो आज तक एक साथ खेलते आ रहे थे , अब एक दुसरे के विरुद्ध खेल पायेंगे ? यह सब तो समय ही बता पायेगा ।
बीसीसीआई ने पैसे तो खुब कमा लिये , अब बारी है क्रिकेट प्रेमीयो के आशाओं पर खरा उतरने की । दर्शक आईपीएल से तभी जुङे रह पायेंगे अगर खेल मजेदार होगा और टीमों के बीच अच्छी प्रतीद्वंदीता रहेगी । अब बस इंतजार है आज शाम का ।
मंगलवार, 15 अप्रैल 2008
काँग्रेसी नेताओं की चापलूसी
ऐसा लगता है कि राजनीति में हद की परिभाषा बदलने का ठेका मानों काँग्रेसी नेताओं ने ले लिया है । आये दिन कुछ नये कारनामों से चर्चा में रहने की जद्दोजहद मे आजकल काँग्रेसी लगे हैं । अर्जुन सिंह का बयान इसी कङी का एक हिस्सा है । इससे साफ झलकता है कि काँग्रेस में अग्रगणी नेताओं की कमी तो है हि , साथ-साथ पुराने नेता भी ढपोर-शंखी हो गये हैं । अब खबर मे बने रहने और आलाकमान के स्नेह-पात्र बने रहने के लिए ये नेता किस कदर व्याकुल रहते है ।
राहुल बाबा तो अभी राजनीति की तीपहीया पकङ कर ठीक से खङे भी नहीं हो पा रहे है , और ऐसे नेता जो अपनी राजनैतिक जीवन की अंतिम पारी खेल रहे है , उनको इस देश का बागडोर थामने की बात करते हैं । इनको पता है कि अगर गद्दी पर रहना है तो बिना ऐसी चापलूसी के संभव नहीं । ये सब एक दो दिन मे तो नही सीखा गया है , बर्षों की पाद-प्रछालन के बाद ही इन नेताओं ने यह गुङ सिखा है ।
यह तो मात्र एक शुरुआत है, आने वाले चुनाव की । अब हर छोटे-बङे नेताओं मे एसी होङ सी लग जाएगी । जनता की किसे खबर है ? महंगाई से चाहे जनता मर जाये इनके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगने वाली है ।
मंगलवार, 1 अप्रैल 2008
मुर्ख-दिवस का सच
क्या आप जानते हैं कि "मुर्ख-दिवस" क्यों , और कब से मनाया जाता है ? शायद आप जानते हो , या हो सकता है कि आपको सच्चाई पता ना हो । अगर आपका दिल भारी हो तो कृप्या कर आगे पढें ---
"मुर्ख-दिवस" को मनाने कि बात सदीयों पुरानी हैं , इस का विवरण महामुनी गंधर्व व्यास लिखित दुर्लभ ग्रंथ में भी मिलता है । (नाम लिखने के लिये जगह नहीं है )। तब इस दुनिया मे दो राज्य हीं थे । एक राज्य का नाम "इंद्रप्रस्थ" और दुसरे का "हस्तिनापुर" । इंद्रप्रस्थ के चक्रवर्ती राजा "दू-योजन" और "हस्तिनापुर" के निकटवर्ती राजा "सु-योजन" । वास्तव में दोनो के बीच एक गहरा और चौङा रीसता था , जो दोनो को एक दुसरे से अटूट बंधन में जोङ कर शदीयों से रखे था । "सू" का नाम "दू" के राज्य में लेने पर फाँसी और और "दू" के राज्य मे "सू" का नाम लेने वाले को आजीवन कारवास । झगङे कि जङ हमेशा कि तरह एक नारी "परी-योजना" । दू और सू के झगङे मे दोनों राज्य के लोग परेशान । आये दिन दोनों राज्यों के बीच महा-संग्राम हुआ करते थे । कभी "सू" कि सेना "दू" के राज्य पे सरे आलु की बरसात करवाती तो कभी "दू" की सेना "सू" के राज्य पे सरे टमाटर की । दोनों राज्य की जनता परेशान रहते । खाने को अनाज और सब्जीयाँ नहीं बचती और उपर से महा-संग्राम के बाद की बदबू, जिसको साफ करते करते छः महीने गुजर जाते और फिर अगला महा-संग्राम । इस सङे हुए संग्राम से खींझ कर "परी-योजना" ने एक बुढे बैल से शादी कर ली और सू ओर दू के दिल पर पहाङ टुट पङा । सू और दु के टुटे हुए दिल, साँसों का बोझ नहीं उठा पाए और लुठक कर दोनो राज्यो के बीच के रीसते को भर गये ।
रीसते भरते ही दोनों राज्य कि जनता आपस मे मिल कर रहने लगे , आखिर अकेले आलु और टमाटर की भी कोई सब्जी कब तक खाता । तब से ये दिन "सूदू-रयोजना" दिवस के रुप मे लोग मनाते हैं । जिसे अंग्रेजो ने नाम बदल कर "मुर्ख-दिवस" बना दिया जिसे लोग "अप्रैल-फूल" भी कहते है ।
शुक्रवार, 28 मार्च 2008
सहवाग का कमाल
आखीर ईद का चाँद निकल ही गया । एक और जानदार प्रदर्शन । सहवाग का खेल देख कर फिर एक उम्मीद जागी है कि सचिन के बाद शायद भारतीय क्रिकेट बल्लेबाजी में कुछ जान बची रहेगी ।
भारतीय क्रिकेट के लिये आज का दिन कई मायनों मे सुनहरा माना जाएगा । आज सहवाग "सर डॉन ब्रैडमैन" और "ब्राइन लारा" के श्रेणी मे शामिल हो गये है , और साथ-साथ अपने टेस्ट मैच मे सार्वाधिक रन भी बनाया है । साहवाग अब एक नया किर्तीमान बनाते हुए , एक ही पारी में दो दोहरे सतकीय साझीदारी मे हिस्सा लेने वाले पहले खिलाङी भी बन गये हैं । इस तीहरे सतक को सबसे कम बौलों मे होने का भी गर्व भी हासिल हो गया है । आज तो ऐसा लग रहा है कि सचिन के बाद , अब सहवाग ने किर्तीमान तोङने की बागडोर संभाल ली है ।
सहवाग की पारी एक रनों कि बौछार से कम नहीं थी , चाहे जो भी साउथ अफ्रिकी गेंदबाज हो सहवाग ने सब की धुनाई की । अगर सहवाग इसी फार्म में बने रहें तो भारतीय क्रिकेट के सुनहरे दिन आने में देर नहीं होगी ।
रविवार, 23 मार्च 2008
क्या आप कलर ब्लाइंड है ? जाँचे
कलर ब्लाइन्डनेश , इस रोग से ग्रसीत लोगों को रंगों के बीच अंतर पता नहीं चलता, जो अन्य लोग पता कर सकते हैं । यह मुख्यतः एक वंशानुगत बीमारी है, लेकिन कुछ लोगों को यह बीमारी आँख या मस्तिष्क के कुछ रासायनिक द्रव्य के संपर्क में आने से भी हो सकता है ।
क्या आप कलर ब्लाइंड है ? नीचे के चित्र में आपको क्या दिख रहा है, 8 या 6 । पुरे क्विज के लिये नीचे के चित्र पर चटकाएँ ।
बुधवार, 19 मार्च 2008
होली है - रंग और गुलालों की होली की शुभकामनाएँ
सभी आगंतुकों को मेरी होली की ढेर सारी शुभकामनाएँ । होली के कुछ गीतों का आनन्द उठाएँ । होली के अवसर पर कुछ पंक्तियाँ ।
होली आई रे, होली आई रे ।
डुबें हैं सब रंग-अबीर में,
सब हैं रंगे प्यार के रंग में ।
मस्ती का त्योहार है आया
सबने है हुङदंग मचाया ।
उठ रहा है रंगों का उबार
सब तरफ मची है रंगों की बौछार।
आओ रंगे प्यार से सब को
बचे ना कोई जाना-अनजाना,
आओ खेलें हिल-मिल के होली
होली आई रे, होली आई रे ।
सोमवार, 17 मार्च 2008
एक माँ ऐसी भी
आज फिर से भ्रूण-हत्या संबंधी एक खबर आई है कि " दिल्ली में एक डॉक्टर ने अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया क्यों कि उसकी पत्नी ने जुङवाँ लङकी को जन्म दिया " । दोनों दम्पति डॉक्टर है और सास ससुर भी पढे-लिखे हैं । बहु के माँ बनने की खबर पा कर सास ने जबरदस्ती लिंग जाँच करवाया और जब पता चला की दो लङकीयाँ है , तो पहले पेट मे ही एक को मारने के लिय बात हुई । लेकिन पत्नी तैयार नहीं हुई और दोनो को जन्म दिया , और उसके बाद सबने मिलकर बहु को घर से निकाल दिया ।
यह समाचार पढ कर तो मन मे आक्रोश का उफान भरने लगा । मैने सुना है कि एक माँ ही माँ का दर्द समझ सकती है , तो फिर एक सास अपनी बहु का मन क्यो नही समझ सकती । फिर मन में उस माँ के लिय आदर और सम्मान का भाव उभरा जिसने इन सबके बावजूद बच्चीयों को जन्म दिया । ऐसी माँ तू धन्य है ।
गुरुवार, 13 मार्च 2008
राहुल गाँधी और भारत की खोज - राजनैतिक जरुरत या देश प्रेम
आजकल काँग्रेसी नेताओं में सरगर्मी आ गयी है ? इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं । चुनाव की बू सबसे पहले काँग्रेसी नेताओं से ही फैलती है , कम-से-कम ६० सालों तक देश पर राज कर इनता तो सीख ही गए हैं । और अब इस पाठशाला मे एक और कथीत युवा नेता ने नाम लिखाया है, " राहुल गाँधी " । इसी पाठशाला से राहुलजी सीखें हैं कि चार साल तक चाहे लाखों किसान आत्महत्या कर ले, कोई भारत भ्रमण कि जरुरत नहीं, बस जैसे ही चुनावी बिगुल बजे निकल पङो पद-यात्रा के बहाने राजनैतिक रोटी सेकने।
राहुलजी पिछले कुछ हफ्तों से भारत खोज पर निकलें हैं । शायद पिछले चार सालों में भारत किताबों में खोज रहे थे , और जब कुछ हाथ नही लगा तो निकल पङे , जंगल-झाङ में भारत खोजने । अगर दो-तीन साल पहले शुरु करते तो कुछ खोज पाते, मगर अब तो समय कम हैं और भोली-भाली जनता को अपना मुखङा दिखाने का इससे अच्छा समय नहीं । चुनाव में कम समय हैं और इतनी जल्दी लोग भुलेंगे भी नहीं , कम से कम उङीसा पुलिस तो नहीं भुलेगी जो पहले से नक्सलीयों से भीङी हुई है, और झेल रहे हैं बिन-बुलाये मेहमान को। अभी उङीसा की सरकार के नाक में दम कर रखा है , अगला शिकार मध्य-प्रदेश और फिर जाने कौन-कौन । रात की चुपचाप मुलाकात का तो सिर्फ एक ही मकसद हो सकता है मीडीया कवरेज । राहुलजी सोच रहे होंगे काश नकस्लीयों के हाथ लग जाता तो और अच्छा मीडीया कवरेज मिलता , दो तीन हफ्तों तक तो सुर्खीयों में रहता हीं ।
कभी अपनी पार्टी को बदले की माँग , तो कभी कोयला कंपनी का विरोध और अब एक नया सगुफा किसानों की ऋण माफी उत्पादकता पर हो। लगता है कोई ढोस मुद्दा हाथ नहीं लगा है । राहुलजी ६०,००० करोङ का दिखावा कम पङ गया था क्या ? जो अब नया राग अलाप रहे हैं , या फिर पता चल गया की लोग ६०,००० करोङ के झाँसे में नहीं आ रहे है । भगवान बचाये इन राजनीति के नौसिखियों से।
बुधवार, 12 मार्च 2008
कृषि ऋण माफी : एक मृग तृष्णा ?
२००८ के केंन्द्रीय बजट मे भारत सरकार के ६०,००० हजार करोङ के ऋण माफी की घोषणा के बाद, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक पटल पर एक द्वन्द सा प्रारंभ हो गया है । लोगो के बीच इस बजट कि आलोचना और प्रसंशा कि होङ सी मच गई है । एक तरफ यह बजट कुछ लोगों के लिए खुशीयाँ ले कर आया है तो दुसरी तरफ, उदास और मायुस किसान जिनको सरकारी बैंको से लोन नही मिला और आखिर में साहुकारों के चंगुल में फसें । ऐसे किसानो की संख्या दो तीहाई से भी ज्यादा है । और साथ मे वो किसान , जो पाई-पाई जमा कर के बैंको का ऋण चुकाए, और अब पछता रहे हैं ।
सरकार ने ऋण माफी का एलान सिर्फ २ हेक्टेयर से कम जमीन वाले किसानो के लिए की है, जिनके लिए ऋण मिलना ही बङी बात होती है । दलालों और बैंक के बाबुओं को चढावा के बिना एक रुपया का ऋण भी नहीं मिलता । बीजेपी की दलील माने तो ऐसे ऋण २३,००० करोङ से ज्यादा नही है, तो फिर इतना ढिंढोरा क्यों ? इसके साथ-साथ ये ऋण माफी किसानों तक कब पहुँचेगी इसका जिक्र वित्त-मंत्रीजी ने नहीं किया है, और ना ही ये बता रहे हैं कि बैंको को हो रहे घाटो से कैसे उबारेंगे । लगता है कि वी.पी.सिंह की सरकार से कोई सबक लेने को काँग्रेस की सरकार तैयार नहीं है, जब १०,००० करोङ के ऋण माफी के बाद कई सहकारी बैको का दिवालीया निकल गया था ।
अगर काँग्रेस की सरकार सही में किसानो का भला चाहती है तो, किसानो को उचित मुल्य पर खाद और बीज के प्रबंध , आनाज के समर्थन मुल्य, उन्नत खेती के तरीकों को किसान तक पहुचाने पर विचार करना चाहिए, ना की ऐसे चुनावी ढकोसलों पर ध्यान देना चाहिए ।
सोमवार, 10 मार्च 2008
हॉकी का अंत ?
ब्रिटेन ने भारत को 0-2 से हॉकी क्वालिफाइंग मैच मे हरा कर, ओलंपिक के सपने को ध्वस्त कर दिया । वैसे भी क्रिकेट के बढते प्रभाव से , हॉकी पिछङ रहा है , और उपर से ये हार । भारतीय खेल-प्रेमीयों के लिये ये एक बङे सदमे से कम नहीं ।
भारतीय हॉकि संघ को इस पर गंभीर आत्म-मंथन करने कि जरुरत है । हॉकी कोच का इस्तीफा तो शायद इस समस्या कि एक झलक मात्र है । टीम की आंतरीक कलहों का समाचार तो हमें आये दिन मिलता रहता है । इन सब से खिलाङीयों का मनोबल तो गीरता है, उनके खेल पर भी असर पङता है ।
अब जरुरत है कि सभी पक्षों को साथ में बैठ कर इस पर विचार करना पङेगा । हॉकी के गौरवशाली इतिहास को बचाए रखने के लिये , एक सम्यक प्रयास ही कारगर साबित हो सकता है ।
बुधवार, 27 फ़रवरी 2008
क्रिकेट अब सभ्यों का खेल नहीं रहा
क्रिकेट-जगत में इन दिनों जो कुछ भी चल रहा है , उससे तो बस एक ही बात मन मे आती है कि "क्रिकेट अब सभ्यों का खेल नहीं रहा " । भारत - ऑस्ट्रेलिया सीरीज ने तो इस पर मुहर लगा दी है । हर दूसरे खेल के दौरान कोई-ना-कोई विवाद उठ खङा होता है । इस सीरीज में ऑस्ट्रेलिया के खिलाङीयो का व्यवहार निम्न अस्तर का, पुरा क्रिकेट समुदाय थु-थु कर रहा है , लेकिन इन मद-मस्तों के कान पर जूँ तक नहीं रेंगती ।
यह विवाद क्रिकेट के मुल पहचान को बदल रहा है । अब हर टीम मे स्लोजींग एक अभिन्न अंग बनता जा रहा है । इसे इर्जाद करने वाले ऑस्ट्रेलियन को, यह पैतरा उलटा पङ रहा है । इन सब के बीच भारतीय युवा खिलाङीयो को थोङा सतर्क रहने कि जरुरत है । खेलना मुख्य उद्देश्य रहना चाहीए ।
शनिवार, 26 जनवरी 2008
लाख और खाक
छोटे निवेशको का भी बुरा हाल रहा । इन सब से तो एक ही सीख मिलती है कि बिने सोचे समझे सटॉक बाजार में पैसा लगाना सट्टे बाजी से कम नहीं ।
और आज बाजार एक कीर्तिमान बनाते हुए, एक दिन मे 1000 से ज्यादे कि उछाल के साथ जब बंद हुआ , तो मानो लगा ही नही कि दो दिन पहले ही बाजार मे मातम का माहौल था । निवेशको का विश्वास लौटने मे कुछ समय तो जरुर लगेगा । भारत की आर्थिक-स्थिति , जानकारों के नजर मे इस साल अच्छी रहने कि संभावना है , इस कारण बाजार में इस साल भी हलचल बनी रहेगी ।
शुक्रवार, 25 जनवरी 2008
भारतरत्न की राजनीति
ये प्रश्न सबके मन मे हैं कि अगला भारतरत्न किसे मिलना चाहीए, लकिन इसमे दो राय नही की ये आजकल के राजनीतिको पे नहीं छोङा जा सकता ।
बुधवार, 9 जनवरी 2008
भारत की सिडनी जीत
आखिरकार आईसीसी को सच्चाई के सामने झुकना ही पङा । शायद इसे कुछ लोग इसे घनी बीसीसीआई के सामने आईसीसी का नतमस्तक होना कहे या फिर दो देशों के बीच एक बङा विवाद पर पुर्ण-विराम लगाने कि कोशीश कहे । मेरा यह मानना है कि आज क्रिकेट और भारत की वर्षों पुरानी रंग भेद के संघर्ष की फिर जीत हुई है ।
खेल को युद्घ मे बदलने की रिकी पौन्टींग कि कोशिश को एक करारा जवाब मिला है । आज औस्ट्रेलिया के लोग हि रिकी पौन्टींग के दुर्योघन-नीति को अस्वीकार कर दिया है । खेल अगर खेल कि भावना से ना खेला जाए , इसका नजारा तो सारी दुनिया ने सिडनी टेस्ट मे देखा है । और अब रिकी पौन्टींग को शायद ये समझ आ जाए कि क्रिकेट प्रेमीयों ने चाहे औस्ट्रेलियाई हो या भारतीय , सिर्फ एक सभ्य तरीके का खेल देखना चाहती है ।
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